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नज़्म
राम और कृष्ण के जीवन से तुझे प्यार मगर
बादा-ए-हुब्ब-ए-मोहम्मद से भी सरशार मगर
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
बादा-ए-हुब्ब-ए-वतन के जाम भर भर कर पिला
तिश्नगी प्यासों की यूँ साक़ी बुझानी चाहिए
बाबू मुर्ली धर
नज़्म
जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन हो न अगर दिल में निहाँ
ऐसे जीने से तो मरने का ख़याल अच्छा है
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
वो तही-दस्त हैं जो ज़ोर न ज़र रखते हैं
जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन दिल में मगर रखते हैं
सरदार नौबहार सिंह साबिर टोहानी
नज़्म
हर तरफ़ हो जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन शो'ला-फ़िशाँ
गुलख़न-ए-सोज़ाँ नज़र आए यहाँ का हर जवाँ
टीका राम सुख़न
नज़्म
हो दर्द-ए-दिल में जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन फ़ुज़ूँ
'मफ़्तूँ' क़लम उठाओ कि पंद्रह अगस्त है
मफ़तूं कोटवी
नज़्म
क्या ख़ुदा का ख़ौफ़ कैसा जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन
बरसर-ए-पैकार थे आपस में शैख़-ओ-बरहमन
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
कोह वही दमन वही दश्त वही चमन वही
फिर ये 'मजाज़' जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन को क्या हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन दिल में निहाँ रखते हैं
मिस्ल-ए-ख़ूँ जोश ये रग रग में रवाँ रखते हैं
बर्क़ देहलवी
नज़्म
तमाम अहल-ए-ज़मीं की हमदमी का ज़िक्र अभी से क्यों
अभी तो जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन की आज़माइश है
फ़ज़लुर्रहमान
नज़्म
ऐ सूर-ए-हुब्ब-ए-क़ौमी इस ख़्वाब से जगा दे
भूला हुआ फ़साना कानों को फिर सुना दे