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नज़्म
ख़ाक के ज़र्रों को तनवीर-ए-नज़र देता है वो
फूल की पत्ती को लोहे का जिगर देता है वो
हबीब जौनपुरी
नज़्म
रहबर जौनपूरी
नज़्म
जब दिन ढल जाता है, सूरज धरती की ओट में हो जाता है
और भिड़ों के छत्ते जैसी भिन-भिन
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी