aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "iiqaan"
न एहसास ईमान ईक़ान कोईन दुनिया में शामिल न ख़ुद अपनी पहचान कोई
कि जब जब सई करता हूँ हवस इंकार करती हैमगर ईक़ान है मेरा हमारे अहद के बच्चे
फ़िक्र आज़ाद हुई ज़ेहन के जाले टूटेऔर ईक़ान की लौ सीना-ए-इंसाँ से उठी
उठ कि तेरे हाथ में ईक़ान की शमशीर हैतू अगर चाहे तो ये दुनिया तिरा नख़चीर है
ख़ुद अपनी ज़ात के ईक़ान पर बाहर निकल आएयक़ीं हो आप पर तो साहिलों को छोड़ देते हैं
ख़्वाब है तो ईक़ाँ है वहम है तो ईमाँ हैइक हिसार-ए-आईना
मिरी दस्तरस में तमन्नाओं के मरहले भी शब-ए-वस्ल के सिलसिले भीमिरी दस्तरस में अज़ाएम भी जुरअत भी ईक़ान भी हौसले भी
एक एकन एकमामूँ लाया केक
तुझ को देता है तिरी ज़ात का ईक़ान अगर मेरा वजूदमैं भी तुझ से तिरी किरनें ले कर
जिन के आहंग पे आँखों में दिए जलते थेजिन के हर लफ़्ज़ पे ईक़ान हुआ करता था
जिस्म पर उस के और जान परदीन-ओ-ईमान पर
जिन के आहंग पे आँखों में दिये जलते थेजिन के हर लफ़्ज़ पे ईक़ान हुआ करता था
ना-तवानों के निवालों पे झपटते हैं उक़ाबबाज़ू तोले हुए मंडलाते हुए आते हैं
बस रहे थे यहीं सल्जूक़ भी तूरानी भीअहल-ए-चीं चीन में ईरान में सासानी भी
मंफ़अत एक है इस क़ौम का नुक़सान भी एकएक ही सब का नबी दीन भी ईमान भी एक
देख कि आहन-गर की दुकाँ मेंतुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन
उस से तुम नहीं डरते!हर्फ़ और मअनी के रिश्ता-हा-ए-आहन से आदमी है वाबस्ता
हमारा 'ग़ालिब'-ए-आज़म था चोर आक़ा-ए-'बेदिल' कासो रिज़्क़-ए-फ़ख़्र अब हम खा रहे हैं 'मीर'-ए-बिस्मिल का
कैसे गुलचीं के लिए झुकती है ख़ुद शाख़-ए-गुलाबकिस तरह रात का ऐवान महक जाता है
तमाम सूफ़ी ओ सालिक सभी शुयूख़ ओ इमामउमीद-ए-लुत्फ़ पे ऐवान-ए-कज-कुलाह में हैं
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