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नज़्म
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूक के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के
साहिर लुधियानवी
नज़्म
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाए जाएगी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
छाई है जो अब तक धरती पर उस रात से लड़ते आए हैं
दुनिया से अभी तक मिट न सका पर राज इजारा-दारी का
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
जहाँ पे ये लोग ज़िंदगी के इजारा-दार आ सकें तो आएँ
दिनों को राहों की ख़ाक उड़ाईं
मुख़्तार सिद्दीक़ी
नज़्म
नमक नापैद है नायाब है इस क़हत-साली में
इजारा-दारी उस की तख्त-ए-शाही के लिए महफ़ूज़ है अब