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नज़्म
'इलाज-ए-तंगी-ए-दामान-ए-याराँ चाहता हूँ मैं
निफ़ाक़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ को गुरेज़ाँ चाहता हूँ मैं
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
गर्दिश-ए-दौराँ पे कोई फ़त्ह पा सकता नहीं
तेरे लब पर शिकवा-ए-आलाम-ए-दौराँ है तो क्या
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
तू ऐ गाँधी 'इलाज-ए-दर्द-ए-इंसाँ बन के आया था
अँधेरी रात में सुब्ह-ए-दरख़्शाँ बन के आया था
जाफ़र मलीहाबादी
नज़्म
ख़ल्लाक़-ए-दो-'आलम का किया ज़िक्र-ओ-तसव्वुर
क्या ख़ूब 'इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ हम ने किया है
इनाम थानवी
नज़्म
मरज़ कहते हैं सब इस को ये है लेकिन मरज़ ऐसा
छुपा जिस में इलाज-ए-गर्दिश-ए-चर्ख़-ए-कुहन भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इसी के सब करिश्मे ये नज़र आते हैं दुनिया में
इसी के दम से रौनक़ आलम-ए-इम्काँ की है सारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
कोई जबीं न तिरे संग-ए-आस्ताँ पे झुके
कि जिंस-ए-इज्ज़-ओ-अक़ीदत से तुझ को शाद करे