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नज़्म
इक जुनूँ-पर्वर बगूला है वो इल्म-ए-बे-वसूक़
जिस की रौ में काँपने लगते हैं शौहर के हुक़ूक़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
बे-इल्म-ओ-बे-हुनर है जो दुनिया में कोई क़ौम
नेचर का इक़तिज़ा है रहे बन के वो ग़ुलाम
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
यूरोप में बहुत रौशनी-ए-इल्म-ओ-हुनर है
हक़ ये है कि बे-चश्मा-ए-हैवाँ है ये ज़ुल्मात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तू ने रम्ज़-ए-क़ल्ब-ए-मख़्फ़ी आश्कारा कर दिए
मा'नी-ए-इल्म-ओ-अमल पर्दा से बे-पर्दा किए
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
नज़्म
ये भी लाज़िम है कि मत कीजे ज़ियादा गुफ़्तुगू
ताकि अहल-ए-'इल्म-ओ-दानिश में न हों बे-आबरू
जब्बार वासिफ़
नज़्म
रहबर जौनपूरी
नज़्म
तेरी नज़र में हैं तमाम मेरे गुज़िश्ता रोज़ ओ शब
मुझ को ख़बर न थी कि है इल्म-ए-नख़ील बे-रुतब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जब तक जियो तुम इल्म-ओ-दानिश से रहो महरूम याँ
आई हो जैसी बे-ख़बर वैसी ही जाओ बे-ख़बर