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नज़्म
जो एक था ऐ निगाह तू ने हज़ार कर के हमें दिखाया
यही अगर कैफ़ियत है तेरी तो फिर किसे ए'तिबार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मगर मैं घर से ख़ानदान भर ख़ुशियों के लिए निकला हूँ
और वहाँ मेरा इंतिज़ार किया जा रहा है
सरवत हुसैन
नज़्म
रहा करता है अहल-ए-ग़म को क्या क्या इंतिज़ार इस का
कि देखें वो दिल-ए-नाशाद को कब शाद करते हैं