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नज़्म
ज़ेब उस्मानिया
नज़्म
वहीद अख़्तर
नज़्म
बेचैन रूह हूँ तो जिस्म से नजात क्यूँ नहीं पाती
मैं डरती हूँ इंसानी अश्काल में घूमते भेड़ियों से
मर्यम तस्लीम कियानी
नज़्म
हैं माजूनें मुफ़ीद ''अर्वाह'' को माजून यूँ होता
सुनो तफ़रीक़ कैसे हो भला अश्ख़ास ओ अश्या में
जौन एलिया
नज़्म
ब-मुश्ताक़ाँ हदीस-ए-ख़्वाजा-ए-बदरौ हुनैन आवर
तसर्रुफ़-हा-ए-पिन्हानश ब-चश्म-ए-आश्कार आमद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं शहीद-ए-जुस्तुजू था यूँ सुख़न-गुस्तर हुआ
ऐ तिरी चश्म-ए-जहाँ-बीं पर वो तूफ़ाँ आश्कार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इल्म ओ हिकमत रहज़न-ए-सामान-ए-अश्क-ओ-आह है
या'नी इक अल्मास का टुकड़ा दिल-ए-आगाह है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़माना आया है बे-हिजाबी का आम दीदार-ए-यार होगा
सुकूत था पर्दा-दार जिस का वो राज़ अब आश्कार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आश्कार उस ने किया जो ज़िंदगी का राज़ था
हिन्द को लेकिन ख़याली फ़ल्सफ़ा पर नाज़ था