aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "islaah-e-haal"
ये शख़्स यहाँ पामाल रहा, पामाल गयातिरी चाह में देखा हम ने ब-हाल-ए-ख़राब इसे
तू समझता है ये आज़ादी की है नीलम-परीमज्लिस-ए-आईन-ओ-इस्लाह-ओ-रिआयात-ओ-हुक़ूक़
नुक़्ता-ए-परकार-ए-हक़ मर्द-ए-ख़ुदा का यक़ींऔर ये आलम तमाम वहम ओ तिलिस्म ओ मजाज़
क़ौम की इस्लाह-ओ-ख़िदमत में हज़ारों दुख सहेआंधियों की ज़द पे तुम करते रहे रौशन दिए
शहर-ए-ना-वाक़िफ़-ए-हाल में आ गएपंछियों की तरह जाल में आ गए
फिर वही उम्र-ए-गुरेज़ाँ का मलालफिर वही कश्मकश-ए-माज़ी-ओ-हाल
माज़ी-ओ-हाल कीवक़्त की मंज़िलों की
क़त्ल-गाह की रौनक़हस्ब-ए-हाल रखनी है
जब सूरत-ए-हाल समझता नहींउसे रह रह कर समझाना क्या
सूरत-ए-हाल है ख़बर पाईऔर अपना बुरा भला देखा
हालत-ए-हाल ऐसी है किदिन का सोते हुए बीत जाना
इंसानी मसाइल का बयाँ होगीतलाश-ए-हल के मारों की
फिर भी मैं इस सूरत-ए-हाल कोवाज़ेह तौर पर समझना चाहता हूँ
अब तू ही बता क्या करेंकितनी मुश्किल सूरत-ए-हाल है
कई घर लब-ए-हाल से कह रहे हैंकि जब से गए हो
अपने गुज़रे हुए कल की ख़ुश-बूलम्हा-ए-हाल में शामिल कर के
तिरा धियान लिए मैं नगर नगर घूमाशरीक-ए-हाल थी तेरी नज़र की पहनाई
मिरी ख़ाली आँखें नए ख़्वाब से भरमुझे लज़्ज़त-ए-हाल से आश्ना कर
सूरत-ए-हाल इस क़दर मायूस-कुन भी नहींजब इंसाफ़-गाहों के अनगिनत
माज़ी ओ हाल की तफ़रीक़ वो क़ुर्बत ये फ़िराक़प्यार गुलशन से चला आया है ज़िंदानों में
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