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नज़्म
बिजलियाँ जिस में हों आसूदा वो ख़िर्मन तुम हो
बेच खाते हैं जो अस्लाफ़ के मदफ़न तुम हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सो फ़ौरन बिन्त-ए-अशअश का पिलाया पी गया होगा
वो इक लम्हे के अंदर सरमदिय्यत जी गया होगा
जौन एलिया
नज़्म
मेरे वादों से डरो मेरी मोहब्बत से डरो
अब मैं अल्ताफ़ ओ इनायत का सज़ा-वार नहीं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ख़ाक-ए-सहरा पे जमे या कफ़-ए-क़ातिल पे जमे
फ़र्क़-ए-इंसाफ़ पे या पा-ए-सलासिल पे जमे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जिस की पीरी में है मानिंद-ए-सहर रंग-ए-शबाब
कह रहा है मुझ से ऐ जूया-ए-असरार-ए-अज़ल
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
'गाँधी' हो कि 'ग़ालिब' हो इंसाफ़ की नज़रों में
हम दोनों के क़ातिल हैं दोनों के पुजारी हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जौन एलिया
नज़्म
अशराफ़ को बनाती है इक आन में फ़क़ीर
क्या क्या मैं मुफ़्लिसी की ख़राबी कहूँ 'नज़ीर'