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नज़्म
इत्र-ओ-अंबर से हवा है किस क़दर महकी हुई
ख़ुशनुमा महताबियों से है फ़ज़ा दहकी हुई
मोहम्मद सिद्दीक़ मुस्लिम
नज़्म
शुमाली दरख़्तों के बाग़ों के फूलों की ख़ुशबू
जहाँ दम-ब-दम इत्र ओ तूफ़ाँ बहम और गुरेज़ाँ
नून मीम राशिद
नज़्म
क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद
नज़्म
मुश्क-ओ-अम्बर की महक आती है बाम-ओ-दर से
ऐसे लफ़्ज़ों से मुज़य्यन है मकान-ए-उर्दू
जावेद रशीद आमिर
नज़्म
किसी की नर्गिस-ए-शरसार के मुबहम से अफ़्साने
किसी की ज़ुल्फ़-ए-अम्बर-बार के बरहम से अफ़्साने
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
थके-माँदे मुसाफ़िर को सुला देता लब-ए-दरिया
हवा-ए-सर्व बन कर मौजा-ए-‘अम्बर-फ़शाँ हो कर