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नज़्म
वो जाँ-फ़रेबी-ए-इज़हार-ए-दिल-नवाज़-ए-सुख़न
जबीं पे वुसअ'त-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र की तहरीरें
मुस्लिम शमीम
नज़्म
आदमी को 'अक़्ल-ओ-‘इल्म-ओ-आगही देता है कौन
चाँद को तारों को आख़िर रौशनी देता है कौन
मेहदी प्रतापगढ़ी
नज़्म
यहीं की थी मोहब्बत के सबक़ की इब्तिदा मैं ने
यहीं की जुरअत-ए-इज़हार-ए-हर्फ़-ए-मुद्दआ मैं ने
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
जो बयाँ इज़हार-ए-हर्फ़-ए-मुद्दआ पर ख़त्म हो
उस की बिल्कुल मुख़्तसर तम्हीद होनी चाहिए
मयकश अकबराबादी
नज़्म
जो बयाँ इज़हार-ए-हर्फ़-ए-मुद्दआ पर ख़त्म हो
उस की बिल्कुल मुख़्तसर तम्हीद होनी चाहिए