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नज़्म
चलो यूँ करो मिरे वास्ते कि बुलंद-ओ-बाला इमारतों का लो जाएज़ा
जो फ़लक को बोसा लगा रही हों इमारतें,
आरिफ़ इशतियाक़
नज़्म
सोने से पहले ख़यालात में खोया हुआ हूँ
दिन में क्या कुछ किया इक जाएज़ा लेता है ज़मीर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
क्या किया है तू ने दिन-भर में ज़रा मुझ को बता
यूँ तकब्बुर में वो आ कर जाएज़ा लेने लगा
अर्श मलसियानी
नज़्म
ज़िंदगी की सभी राहों से गुज़रता हूँ नदीम
जाएज़ा लेता हूँ हर मोड़ पे शाइ'र का दिमाग़
अख़्तर पयामी
नज़्म
कि आख़िर इस जहाँ का एक निज़ाम-ए-कार है आख़िर
जज़ा का और सज़ा का कोई तो हंजार है आख़िर
जौन एलिया
नज़्म
दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएँगे
कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे, कुछ अपनी जज़ा ले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जन्नत तिरी पिन्हाँ है तिरे ख़ून-ए-जिगर में
ऐ पैकर-ए-गुल कोशिश-ए-पैहम की जज़ा देख!