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नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
कल वॉशिंगटन शहर की हम ने सैर बहुत की यार
गूँज रही थी सब दुनिया में जिस की जय-जय-कार
अहमद फ़राज़
नज़्म
पुतलियाँ दोनों तिरी आँखों में दो नीलम लगे
और तिरी आँखों का पानी मुझ को जाम-ए-जम लगे
जय राज सिंह झाला
नज़्म
जब ख़ुर्शीद-ए-आज़ादी की फूटी थी किरन वो दिन आया
चमके थे ज़िया-ए-ख़ास से जब कोहसार-ओ-दमन वो दिन आया
अर्श मलसियानी
नज़्म
हर मज़हब से ऊँची है क़ीमत इंसानी जान की
बच्चो तुम तक़दीर हो कल के हिन्दोस्तान की