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नज़्म
गुज़िश्ता अज़्मतों के तज़्किरे भी रह न जाएँगे
किताबों ही में दफ़्न अफ़्साना-ए-जाह-ओ-हशम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
शौकत-ए-जाह-ओ-हशम है मंज़िल-ए-मक़्सूद है
अपने बंदों की हक़ीक़त तुझ से कब मफ़क़ूद है
टीका राम सुख़न
नज़्म
जहान-ए-शौक़ का अफ़्साना-ए-जाह-ओ-हशम भी हैं
करिश्मा है ख़ुदा का आप के औसाफ़ के क़ाइल
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
है जो राह-ए-ज़िंदगी में पेच-ओ-ख़म का इक मक़ाम
या इमारत में है जो जाह-ओ-हशम का इक मक़ाम
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
मुझे शिकवा नहीं उन साहिबान-ए-जाह-ओ-सरवत से
नहीं आती मिरे हिस्सा में जिन की एक भी पाई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तू न रख इतनी हुब-ए-ज़र दिल में मगर ये रख ख़याल
वक़्त की चीज़ बन गई आज नुमूद-ए-जाह-ओ-माल