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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जिन के हंगामे अभी दरिया में सोते हैं ख़मोश
कश्ती-ए-मिस्कीन-ओ-जान-ए-पाक-ओ-दीवार-ए-यतीम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सुन ऐ ग़ाफ़िल सदा मेरी ये ऐसी चीज़ है जिस को
वज़ीफ़ा जान कर पढ़ते हैं ताइर बोस्तानों में