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नज़्म
दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं
तेरी आवाज़ के साए तिरे होंटों के सराब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जहाँबानी से है दुश्वार-तर कार-ए-जहाँ-बीनी
जिगर ख़ूँ हो तो चश्म-ए-दिल में होती है नज़र पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उस जान-ए-जहाँ को भी यूँही क़ल्ब-ओ-नज़र ने
हँस हँस के सदा दी कभी रो रो के पुकारा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कार-ख़ानों के भूके जियालों के नाम
बादशाह-ए-जहाँ वाली-ए-मा-सिवा, नाएब-उल-अल्लाह फ़िल-अर्ज़