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नज़्म
किसी दिन चाँद पर हम लोग भी रॉकेट से जाएँगे
ये माना चाँद अभी इक रेत का मैदान है लेकिन
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
मुसाफ़िरान-ए-शब-ए-ज़िंदगी की राहों में
चराग़ फ़िक्र-ओ-नज़र के जलाएँगे हम लोग
अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ
नज़्म
हम अपनी नाक़िदाना काविशों को जगमगाएँगे
हम अपनी नस्र में अल्फ़ाज़ का जादू जगाएँगे
नज़ीर फ़तेहपूरी
नज़्म
फ़ाक़ों की चिताओं पर जिस दिन इंसाँ न जलाए जाएँगे
सीनों के दहकते दोज़ख़ में अरमाँ न जलाए जाएँगे