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नज़्म
उसे भी सम्त मिलती उस की भी इक रहगुज़र होती
शबाब अपने जलाल-ए-हश्र-सामाँ की क़सम खाता
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
जहाँ इक साँस भी लेने से घबराते थे हंगामे
जलाल-ए-बे-अमाँ से डर के सो जाते थे हंगामे
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
वो जलाल-ए-शेवा-ए-सादगी वो जमाल-ए-सूरत-ए-ज़िंदगी
वो ज़ुलाल-ए-चश्मा-ए-आगही कि ज़माना-भर को जगा दिया
इक़बाल सुहैल
नज़्म
मुजस्सम शौकत-ए-दौराँ सरापा जाम-ए-जम भी हैं
जलाल-ए-बर्क़ भी हैं ज़ालिमों के वास्ते लेकिन
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
शो'ला-ज़न उन के लहू में है जलाल-ए-महमूद
आज तक जो तह-ए-मेहराब रहे वक़्फ़-ए-सुजूद