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नज़्म
मुझे तो इंतिज़ार-ए-इश्क़ में ही लुत्फ़ आता है
कभी पहलू में मिलता है कभी वो दूर जाता है
अलीना इतरत
नज़्म
तुझ में क्या ल'अल लगे हैं कि तू इतराता है
बे-हिजाबाना हर इक बज़्म में आ जाता है
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
तो रात बनाता है मैं चराग़ जलाता आया हूँ
हमारे दरमियान खिंची दीवार में कोई खिड़की न रक्खी थी तू ने
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
और इक लम्स का गाता पानी नस नस दीप जलाता था
लम्स के जुगनू और मुस्कान की तितली मेरे खिलौने थे