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नज़्म
उत्तर दक्खिन पूरब पच्छिम हर सम्त से इक चीख़ आती है
नौ-ए-इंसाँ काँधों पे लिए गाँधी की अर्थी जाती है
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
मगर ज़ेर-ए-वावैन भी छोटी छोटी बहुत तख़्तियाँ हैं
जली हर्फ़ जिन के बहुत उम्मतों का पता दे रहे हैं