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नज़्म
ज़ेर-ए-मेहराब आ गई हो उस को बेदारी की रात
ख़ुद जनाब-ए-इज़्ज़-ओ-जल से जैसे उमीद-ए-ज़फ़ाफ़
नून मीम राशिद
नज़्म
ये महफ़िल आ ही गई रोज़-ओ-शब की सरहद पर
जनाब-ए-सद्र भी अब सो चुके हैं मसनद पर