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नज़्म
कल ये दुनिया वादी-ए-रक़्स-ओ-नवा कहलाएगी
आज अगर जौलाँ-गह-ए-सैलाब-ओ-तूफ़ाँ है तो क्या
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
फिर उट्ठी एशिया के दिल से चिंगारी मोहब्बत की
ज़मीं जौलाँ-गह-ए-अतलस क़बायान-ए-तातारी है