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नज़्म
मुझे क्या अगर मुझ से पहले
ये धरती मिरी प्यारी धरती फ़क़त इक हयूला थी और ज़ीनत-ए-ताक़-ए-निस्याँ थी
महमूद शाम
नज़्म
दिल पीत की आग में जलता है हाँ जलता रहे उसे जलने दो
इस आग से लोगो दूर रहो ठंडी न करो पंखा न झलो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
कितना अर्सा लगा ना-उमीदी के पर्बत से पत्थर हटाते हुए
एक बिफरी हुई लहर को राम करते हुए
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
दिखती हड्डियाँ कहती है आराम करो अब
दिल कहता है अभी नहीं अभी तो काम पड़ा है सब