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नज़्म
इन्हें जोड़ता हूँ तो कोई बदन
न कोई सुराही न सहरा न दरिया न कोई शजर कुछ भी बनता नहीं
अमीक़ हनफ़ी
नज़्म
ईद के दिन मुस्तफ़ा से यूँ लगे कहने 'हुसैन'
सब्ज़ जोड़ा दो 'हसन' को सुर्ख़ दो जोड़ा मुझे
जौन एलिया
नज़्म
ये सुन के उस ने वहीं अपना इक मँगा जोड़ा
फिर अपने हाथ से जोड़े को छिड़कवाँ रंगवा