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नज़्म
फ़र्ज़ करो ये जोग बजोग का हम ने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सब कुछ माया हो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
आज से ऐ मज़दूर किसानो मेरे गीत तुम्हारे हैं
फ़ाक़ा-कश इंसानो मेरे जोग-बहाग तुम्हारे हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
लेकिन जिन कानों के छेद अभी भरना ही शुरूअ हुए हों
जिन के जोग को ताज़ा-ताज़ा ज़ंग लगा हो
आकाश 'अर्श'
नज़्म
न जाने दानिश-ओ-दीन-ओ-हुनर का नर्ख़ हो अब क्या
रवाँ पाक की क़ीमत तो जग में हार गई वो