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नज़्म
तुम जो मग़रिब की जुगाली से कभी थकते नहीं
तुम को क्या मालूम है तख़्लीक़ का जौहर कहाँ
अंजुम आज़मी
नज़्म
कोई ख़्वाबों में ख़्वाबीदा उमंगों को जगाती है
तो अपनी ज़िंदगी को मौत के पहलू में पाता हूँ