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नज़्म
मेरे ख़ाकों में तिरे हुस्न की तस्वीरें हैं
जुम्बिश-ए-ज़ुल्फ़ तिरी जुम्बिश-ए-लब तेरी है
साबिर दत्त
नज़्म
मैं नहीं लाश है गोया किसी परवाने की
एक इक जुम्बिश-ए-लब आह-ओ-फ़ुग़ाँ का पैग़ाम
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
इक जुम्बिश-ए-लब पर है, रिश्ता जो अज़ल का है
'ज़ेहरा' ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है!
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
लब पर नाम किसी का भी हो, दिल में तेरा नक़्शा है
ऐ तस्वीर बनाने वाली जब से तुझ को देखा है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
शेर हो जाता है सिर्फ़ इक जुम्बिश-ए-लब से निढाल
साँस की गर्मी से पड़ जाता है इस शीशे में बाल
जोश मलीहाबादी
नज़्म
बाद-ए-मुराद ओ चश्मक-ए-तूफ़ाँ लिए हुए
हूँ बू-ए-ज़ुल्फ़-ओ-जुंबिश-ए-मिज़्गाँ लिए हुए
जोश मलीहाबादी
नज़्म
जुम्बिश-ए-बाद-ए-सबा से हो के हम-दोश-ए-नशात
साथ हर सब्ज़े के क्या क्या लहलहाती है बहार
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तेरे सीने में है मुज़्तर जुम्बिश-ए-मौज-ए-ख़याल
चश्मा-ए-बख़शिश है तेरा चश्मा-ए-आब-ए-हयात