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नज़्म
मेरे पैमान-ए-मोहब्बत ने सिपर डाली है
उन दिनों मुझ पे क़यामत का जुनूँ तारी था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
मैं ने मुनइ'म को दिया सरमाया दारी का जुनूँ
कौन कर सकता है इस की आतिश-ए-सोज़ाँ को सर्द
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेरे पैराहन-ए-रंगीं की जुनूँ-ख़ेज़ महक
ख़्वाब बन बन के मिरे ज़ेहन में लहराती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
असर ये भी है इक मेरे जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ का
मिरा आईना-ए-दिल है क़ज़ा के राज़-दानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
निगाह-ए-शौक़ की बेबाकियों पर मुस्कुरा देना
जुनूँ को दर्स-ए-तमकीं दे गईं नादानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कभी जो आवारा-ए-जुनूँ थे वो बस्तियों में फिर आ बसेंगे
बरहना-पाई वही रहेगी मगर नया ख़ारज़ार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो जुनूँ जो आब-ओ-आतिश को असीर कर चुका था
वो ख़ला की वुसअ'तों से भी ख़िराज ले रहा है