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नज़्म
दो कड़वी साँसें लीं दो चिलमों की राख उँड़ेली
और फिर इस के बाद न पूछो खेल जो होनी खेली
मजीद अमजद
नज़्म
हक़ तो ये है कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है
गर न मीठी हो तो कड़वी भी ख़ुशामद कीजे