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नज़्म
इन में सच्चे मोती भी हैं, इन में कंकर पत्थर भी
इन में उथले पानी भी हैं, इन में गहरे सागर भी
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
खालिद इरफ़ान
नज़्म
उस की सरहद में ग़ुलामों ने जो है रखा क़दम
और कंकर पाँव से एक इक के बेड़ी गिर पड़ी
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
मिरी झोली में कंकर हैं तिरी आग़ोश में हीरे
तिरे पैरों में पायल है मिरे पैरों में छाले हैं
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
देख री तेरे सोग में कैसा हाल किया हम ने अपना
दुख के कंकर पत्थर चुनते कोमल हाथ हैं पथराए
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
नज़्म
था यहाँ तक हम पे जौर-ए-गर्दिश-ए-चर्ख़-ए-बुलंद
मोतियों के बदले हम को कंकर आते थे पसंद