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नज़्म
बिमल कृष्ण अश्क
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
क़ुमरियाँ मीठे सुरों के साज़ ले कर आ गईं
बुलबुलें मिल-जुल के आज़ादी के गुन गाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
ये क्या मुमकिन नहीं तू आ के ख़ुद अब इस का दरमाँ कर
फ़ज़ा-ए-दहर में कुछ बरहमी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
हर हुस्न पर गुमाँ है तुझे नक़्श-ए-यार का
ऐ इश्क़ तेरे वहम-ए-सरासर को क्या करूँ