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नज़्म
रिश्तों के ताने-बाने तोड़ कर
ज़ईफ़-ओ-नज़ार माँ बाप की मुंतज़िर आँखों को पीछे छोड़ के
परवेज़ शहरयार
नज़्म
ना-गहाँ आज मिरे तार-ए-नज़र से कट कर
टुकड़े टुकड़े हुए आफ़ाक़ पे ख़ुर्शीद ओ क़मर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नसीर प्रवाज़
नज़्म
कौन से कोह की आड़ में ली ख़ुर्शीद ने जा कर आज पनाह
चौ-तरफ़ा यलग़ार सी की है अब्र ने भी ता-हद्द-ए-नज़र
तरन्नुम रियाज़
नज़्म
जहाँबानी से है दुश्वार-तर कार-ए-जहाँ-बीनी
जिगर ख़ूँ हो तो चश्म-ए-दिल में होती है नज़र पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़िंदगी के जितने दरवाज़े हैं मुझ पे बंद हैं
देखना हद्द-ए-नज़र से आगे बढ़ कर देखना भी जुर्म है
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
उस वक़्त में आ कर किसी महवश का नहाना
वल्लाह कि फ़िरदौस-ए-नज़र का वो नज़ारा
सयय्द महमूद हसन क़ैसर अमरोही
नज़्म
तिरा हुस्न-ए-नज़र महदूद है ज़ाती मक़ासिद तक
तिरी ये शपरा-चश्मी ही तुझे बरबाद कर देगी
मोहम्मद तन्वीरुज़्ज़मां
नज़्म
कि वहशत का ये जंगल बाहें फैलाए बुलाता है
मिरा शौक़-ए-नज़र थक कर ज़मीन पर बैठ जाता है