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नज़्म
गिला करता रहा तू कातिब-ए-तक़दीर से नाहक़
मिला है जो तुझे कितनों को मिलता है ज़माने में
सदा अम्बालवी
नज़्म
राज़-ए-तक़्दीर खुला उन के अमल से उन पर
अपने दर पय है फ़क़त बे-अमली का चक्कर
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
जो ब-ज़ाहिर बुत-शिकन हैं और ब-बातिन बुत-तराश
ख़ूबी-ए-तक़दीर से वो मेहरबाँ देहली में हैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
सरिश्क-ए-याद ना-मुम्किन सही दुनिया की आँखों में
ज़बान-ए-हाल पर इक आलम-ए-तक़दीर बाक़ी है
राम प्रकाश राही
नज़्म
तेरा लिक्खा हुआ मेरा ख़त-ए-तक़्दीर भी है
क्या कहूँ लौह-ए-जबीं पर तिरी तहरीर भी है