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नज़्म
बहुत जंजाल हैं पर हो यहाँ तो ''या'' में और ''या'' में
तुम्हारी जो हमासा है भला उस का तो क्या कहना
जौन एलिया
नज़्म
कनार अज़ ज़ाहिदाँ बर-गीर ओ बेबाकाना साग़र-कश
पस अज़ मुद्दत अज़ीं शाख़-ए-कुहन बाँग-ए-हज़ार आमद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मस्ताना हाथ में हाथ दिए ये एक कगर पर बैठे थे
यूँ शाम हुई फिर रात हुई जब सैलानी घर लौट गए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
हुक़्क़ा सुराही जूतियाँ दौड़ें बग़ल में मार
काँधे पे रख के पालकी हैं दौड़ते कहार
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ख़ुफ़्तगान-ए-लाला-ज़ार ओ कोहसार ओ रूद बार
होते हैं आख़िर उरूस-ए-ज़िंदगी से हम-कनार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क्यूँ भी कहना जुर्म है कैसे भी कहना जुर्म है
साँस लेने की तो आज़ादी मयस्सर है मगर
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
रूदाद-ए-मोहब्बत फिर कहना अब मान भी जाओ रहने दो
जादू न जगाओ रहने दो फ़ित्ने न उठाओ रहने दो
आमिर उस्मानी
नज़्म
फूल क्या ख़ार भी हैं आज गुलिस्ताँ-ब-कनार
संग-रेज़े हैं निगाहों में गुहर आज की रात