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नज़्म
आलम-ए-आब-ओ-ख़ाक में तेरे ज़ुहूर से फ़रोग़
ज़र्रा-ए-रेग को दिया तू ने तुलू-ए-आफ़्ताब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मेरी तमाम ज़िंदगी मा'रका-हाए-ख़ैर-ओ-शर
मेरी निगाह-ए-अर्श पर मैं कफ़-ए-ख़ाक-ए-ओ-ख़ुद-निगर
मीर यासीन अली ख़ाँ
नज़्म
कैफ़-ए-सुख़न से मस्त हूँ तेरी ग़ज़ल सुनीं
इस बज़्म में जिन्हें हवस-ए-नाव-नोश है
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
जिस ने इस का नाम रखा था जहान-ए-काफ़-अो-नूँ
मैं ने दिखलाया फ़रंगी को मुलूकियत का ख़्वाब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हो न जाए राख जल कर ये दयार-ए-ख़ार-ओ-ख़स
डाल दे बिजली से ले कर उस के सीने में नफ़स
मैकश हैदराबादी
नज़्म
कि शो'ला-ज़न है रग-ए-ख़ार-ओ-ख़स में ज़ौक़-ए-नुमू
न अब वो गर्दिश-ए-अफ़्लाक है न दर्द-ए-हयात
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
आज भी नुक्ता-चीं हूँ मैं ख़ल्वतियान-ए-ख़ास का
ख़ल्वतियान-ए-ख़ास का आज भी हूँ मिज़ाज-दाँ