aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "kafan-chor"
किसी शहर में इक कफ़न-चोर आयाजो रातों को क़ब्रों में सूराख़ कर के
कुछ नहीं, घर में मिरे कुछ भी नहींकोई कपड़ा कि हरारत को बदन में रखता
मुझे इन आग के शालों में कहाँ छोड़ गई
न मिरा मकाँ ही बदल गया न तिरा पता कोई और हैमिरी राह फिर भी है मुख़्तलिफ़ तिरा रास्ता कोई और है
कहाँ छोड़ आए हो अपने समुंदर कोतुम्हें यूँ ही भटकना है
ऐसे लम्हात में सो गए तुम कहाँछोड़ कर मुझ को मक़्तल में तन्हा भला
इज़्ज़त की बहुत सी क़िस्में हैंघूँघट थप्पड़ गंदुम
तुम अपने ख़ुदा को कहाँ छोड़ आई होतुम्हारी नमाज़ों का नूर कहाँ रह गया है
लोग हम से रोज़ कहते हैं ये आदत छोड़िएये तिजारत है ख़िलाफ़-ए-आदमियत छोड़िए
सब्ज़-ओ-शादाब साहिलरेत के और पानी के गीत
दुनिया में पादशह है सो है वो भी आदमीऔर मुफ़्लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी
याद मैं अब कहाँ छोड़ आऊँ तुझेअब ये मुमकिन कहाँ भूल जाऊँ तुझे
जब आदमी के हाल पे आती है मुफ़्लिसीकिस किस तरह से उस को सताती है मुफ़्लिसी
तुम मुझे छोड़ करमुझ से रिश्ते-नाते तोड़ कर
मैं दो चार अश'आरनज़्में क़साएद
जो पूछा गया भई कहाँ है चरा-गाहतो फ़रमाया भैंसा उसे चर गया है
पॉकेट उड़ा के चोर कोई भागता हुआइक रोज़ इक पुलिस के शिकंजे में आ गया
चोट लगीकहाँ कहाँ लगी
मैं अपने होने कोखोजता हूँ
इक रोए चलाए तड़पे कलपे और कलपाएइक इक से कहे राम-कहानी
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