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नज़्म
कल अपने पाईन बाग़ में हम ने मैना पकड़ी थी
काले मख़मल जैसे उस के पर थे चोंच सुनहरी थी
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
नज़्म
घर में कुछ भी नहीं तारीक सी ख़ुशबू के सिवा
कुछ चमकता नहीं अब ख़ौफ़ के जुगनू के सिवा