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नज़्म
वफ़ा के मो'जिज़े का ए'तिराफ़ उन को भी मुझ को भी
तसन्नो' की करामत के वो क़ाइल हैं न मैं क़ाइल
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
मोहब्बत भरा ख़त मिरे और तिरे दरमियाँ तीर है
मैं लिक्खूँ और लिखता रहूँ ता-क़यामत
अली मोहम्मद फ़र्शी
नज़्म
मुबश्शिर अली ज़ैदी
नज़्म
उस की करामतों में जिस और भी ज़ुल-जलाल दे
उस से अगर है बद-ज़नी दिल में तो अब निकाल दे
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
जिन्हें तुम फूल सी कहते हो वो बातें तुम्हारी हैं
क़यामत सी जिन्हें कहते हो रफ़्तारें तुम्हारी हैं
उबैदुल्लाह अलीम
नज़्म
सदाक़त-ए-अस्र भी यही हैं कराहत-ए-जब्र भी यही हैं
अलामत-ए-दर्द भी यही हैं करामत-ए-सब्र भी यही हैं