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नज़्म
करोड़ों क्यूँ नहीं मिल कर फ़िलिस्तीं के लिए लड़ते
दुआ ही से फ़क़त कटती नहीं ज़ंजीर मौलाना
हबीब जालिब
नज़्म
मुझे बचाओ कि मैं ज़मीं हूँ
करोड़ों करोड़ों की काएनात-ए-बसीत में सिर्फ़ मैं ही हूँ
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
हज़ारों बाग़ रवाँ हैं करोड़ों हैं गुलज़ार
चमन चमन पड़े फिरते हैं सर्व गुल रुख़्सार
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
जिस मुल्क में करोड़ों बे-मिस्ल थे दिलावर