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नज़्म
हत्ता कि अपने ज़ोहद-ओ-रियाज़त के ज़ोर से
ख़ालिक़ से जा मिला है सो है वो भी आदमी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
दुनिया में ले के शाह से ऐ यार ता-फ़क़ीर
ख़ालिक़ न मुफ़्लिसी में किसी को करे असीर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
दफ़्न कर देगा जो ख़ालिक़ को भी मख़्लूक़ समेत
और ये आबादियाँ बन जाएँगी फिर रेत ही रेत
अहमद फ़राज़
नज़्म
मुस्कुरा कर ख़ालिक़-ए-अर्ज़-ओ-समा ने दी निदा
ऐ ग़ज़ाल-ए-मशरिक़ी आ तख़्त के नज़दीक आ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
शौकत परदेसी
नज़्म
हाज़िरी अब कौन बोले कौन अब आएगा लेट
कॉलेज और स्कूल हैं सुनसान ख़ाली इन के गेट
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
सदा गुफ़्तुगू सौ तरह गुफ़्तुगू की
ज़हानत के पुतले मोहब्बत के ख़ालिक़ फ़क़त ये बता दे