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नज़्म
तितली का नाज़-ए-रक़्स ग़ज़ाला का हुस्न-ए-रम
मोती की आब गुल की महक माह-ए-नौ का ख़म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
पापड़ जैसी हुईं हड्डियाँ जलने लगे हैं दाँत
जगह जगह झुर्रियों से भर गई सारे तन की खाल
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
यहीं की ख़ाक से उभरे थे 'प्रेमचंद' ओ 'टैगोर'
यहीं से उठ्ठे थे तहज़ीब-ए-हिन्द के मेमार
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
खेल-खिलौनों का हर-सू है इक रंगीं गुलज़ार खिला
वो इक बालक जिस को घर से इक दिरहम भी नहीं मिला
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मिरे तमाम दोस्त अजनबी रफ़ाक़तों में गुम
मिरी नज़र में तेरे ख़द्द-ओ-ख़ाल तेरे ख़्वाब थे