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नज़्म
फ़ुरात के किनारे भूक से मर जाने वाले कुत्ते के लिए
इस लिए कि वो थे ख़लीफ़ा-ए-वक़्त
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
आह बू-क़ैस की मौत के बार से झुक गए हैं ख़लीफ़ा के शाने
अबू-क़ैस क्या था तुम्हें क्या ख़बर शाम वालो
अली अकबर नातिक़
नज़्म
ख़लफ़ उस के ख़ज़फ़ और बे-निहायत ना-ख़लफ़ निकले
हम उस के सारे बेटे इंतिहाई बे-शरफ़ निकले
जौन एलिया
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
फिर कहेंगे कि हँसी में भी ख़फ़ा होती हैं
अब तो 'रूही' की नमाज़ें भी क़ज़ा होती हैं
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
ख़फ़ा जब ज़िंदगी हो तो वो आ के थाम लेते हैं
रुला देती है जब दुनिया तो आ कर मुस्कुराते हैं
इरफ़ान अहमद मीर
नज़्म
किसी ने ज़हर-ए-ग़म दिया तो मुस्कुरा के पी गए
तड़प में भी सुकूँ न था, ख़लिश भी साज़गार थी
आमिर उस्मानी
नज़्म
ख़लिश-ए-दिल से उसे दस्त-ओ-गरेबाँ न करूँ
उस के जज़्बात को मैं शो'ला-ब-दामाँ न करूँ