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नज़्म
वो ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म शमीम-ए-मस्त से धुआँ धुआँ
वो रुख़ चमन चमन बहार-ए-जावेदाँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
पड़ गई इक आह कर के रो के उठ बैठी कभी
उँगलियों में ले के ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म एेंठी कभी
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
ख़म-ब-ख़म ज़ुल्फ़ों का वो चेहरे पे मेरे लोटना
भीनी भीनी निकहतों में डूब जाना याद है
हबीब जौनपुरी
नज़्म
ख़म-ब-ख़म राह-गुज़ारों के धड़कने लगे दिल
वुसअ'त-ए-नज्द में बेदार हुआ ज़ौक़-ए-जुनूँ