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नज़्म
पर अब मेरी ये शोहरत है कि मैं बस इक शराबी हूँ
मैं अपने दूदमान-ए-इल्म की ख़ाना-ख़राबी हूँ
जौन एलिया
नज़्म
ला कहीं से ढूँढ़ कर अस्लाफ़ का क़ल्ब-ओ-जिगर
ऐ कि न-शिनासी ख़फ़ी रा अज़ जली हुशियार बाश
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो कुछ नहीं है अब इक जुम्बिश-ए-ख़फ़ी के सिवा
ख़ुद अपनी कैफ़ियत-ए-नील-गूँ में हर लहज़ा
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मुझे सोच कर, या खरोच कर, मेरी याद को न आवाज़ दो,
मुझे ख़त में लिख के ख़ुदाओं का न दो वास्ता
आरिफ़ इशतियाक़
नज़्म
इसी के ख़र्रमी-ए-आग़ोश में उस का नशेमन था
इसी शादाब वादी में वो बे-बाकाना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
ऐ कराची ये बता अब किस से मिलने आऊँगी
किस की बाँहों में सिमट कर चैन ओ सुख मैं पाऊँगी