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नज़्म
मैं उस लड़के से कहता हूँ वो शोला मर चुका जिस ने
कभी चाहा था इक ख़ाशाक-ए-आलम फूँक डालेगा
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कि जब खमीर-ए-आब-ओ-गिल से वो जुदा हुए
तो उन को सम्त-ए-राह-ए-नौ की कामरानियाँ मिलें
नून मीम राशिद
नज़्म
तेरी आँखों में हैं ग़लताँ वो शक़ावत के शरार
जिन के आगे ख़ंजर-ए-चंगेज़ की मुड़ती है धार
जोश मलीहाबादी
नज़्म
गुज़री बात सदी या पल हो गुज़री बात है नक़्श-बर-आब
ये रूदाद है अपने सफ़र की इस आबाद ख़राबे में
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
अब रस्म-ए-सितम हिकमत-ए-ख़ासान-ए-ज़मीं है
ताईद-ए-सितम मस्लहत-ए-मुफ़्ती-ए-दीं है