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नज़्म
चाहती हूँ मिरे उश्शाक़ में कुछ फ़र्क़ न हो
मुफ़्त में कश्ती-ए-एहसास-ए-वफ़ा ग़र्क़ न हो
शकील बदायूनी
नज़्म
जज़्बा-ए-एहसास-ए-ख़ुद्दारी बशर में भर दिया
नाज़ उठाए हिन्द के वो हिन्द का ग़म-ख़्वार था
साहिर होशियारपुरी
नज़्म
जब न मैं मैं हूँ न तुम तुम हो तो फिर आँखों में
ये गिराँबारी-ए-एहसास-ए-शनासाई क्यूँ
शाहिद अख़्तर
नज़्म
रविश-रविश पे दरख़्शाँ है बर्क़-ए-ख़ौफ़-ओ-हिरास
झुलस रहे हैं दर-ओ-बाम-ए-जज़्बा-ओ-एहसास
मुस्लिम शमीम
नज़्म
रूह में जिस ने भरी उर्दू के बे-जाँ जाम में
कैफ़-ए-एहसास-ए-अमल है जिस के हर पैग़ाम में
मयकश अकबराबादी
नज़्म
उसी की सर-बुलंदी से वतन की सर-बुलंदी है
मैं एहसास-ए-वक़ार-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत पेश करता हूँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
मुझ को एहसास-ए-फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू होता रहा
मैं मगर फिर भी फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू खाता रहा