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नज़्म
तुम हो आपस में ग़ज़बनाक वो आपस में रहीम
तुम ख़ता-कार ओ ख़ता-बीं वो ख़ता-पोश ओ करीम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो सब इक बर्फ़ानी भाप की चमकीली और चक्कर खाती गोलाई थे
सो मेरे ख़्वाबों की रातें जलती और दहकती रातें
जौन एलिया
नज़्म
माँ अक्सर मेरी खाँसी पर तुम्हारा धोखा खाती है
ये बड़ की मेरी इक आदत तुम्हारी सी बताती है
मनोज अज़हर
नज़्म
मिरे दिल की फ़सुर्दा ख़ल्वतों में जा न पाएँगी
ये अश्कों की फ़रावानी से धुँदलाई हुई आँखें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
भरी दोपहर में सर अपना जो ढक कर मिलने आती थीं
जो पंखे हाथ के झलती थीं और बस पान खाती थीं
असना बद्र
नज़्म
क़िस्मत पे कभी झुँझलाती है जीने से कभी तंग आती है
ज़रदार पड़ोसन ख़ुश हो कर सब देखती है और खाती है
नुशूर वाहिदी
नज़्म
सहरा में हवा बल खाती है बादल को सबा सन्काती है
पानी से ज़मीं नरमाती है सब्ज़ों से फ़ज़ा लहराती है
नुशूर वाहिदी
नज़्म
क्या जाँ-फ़ज़ा है जल्वा ख़ुर्शीद-ए-ख़ावरी का
हर इक शुआ-ए-रक़्साँ मिस्रा है अनवरी का