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नज़्म
क्या मंदर मस्जिद ताल कुआँ क्या खेती बाड़ी फूल चमन
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
उस शाम मुझे मालूम हुआ जब बाप की खेती छिन जाए
ममता के सुनहरे ख़्वाबों की अनमोल निशानी बिकती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मज्लिस-ए-मिल्लत हो या परवेज़ का दरबार हो
है वो सुल्ताँ ग़ैर की खेती पे हो जिस की नज़र
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
खेती हो या सौदागरी हो भीक हो या चाकरी
सब का सबक़ यकसाँ सुना मेहनत करो मेहनत करो
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
नज़्म
फ़िक्र रहती थी मुझे जिस की वो महफ़िल है यही
सब्र-ओ-इस्तिक़्लाल की खेती का हासिल है यही
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हल हों अब मज़दूरों के और खेती हो दहक़ान की
बच्चो तुम तक़दीर हो कल के हिन्दोस्तान की
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जंगल जंगल आग लगी है बस्ती बस्ती वीराँ है
खेती खेती राख उड़ती है दुनिया है कि बयाबाँ है