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नज़्म
सनानें खींच ली हैं सर-फिरे बाग़ी जवानों ने
तू सामान-ए-जराहत अब उठा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हदें वो खींच रक्खी हैं हरम के पासबानों ने
कि बिन मुजरिम बने पैग़ाम भी पहुँचा नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वजूद अपना मुझे दे दो मोहब्बत बख़्श दो इक दिन
मिरे होंटों पे अपने होंट रख कर रूह मेरी खींच लो इक दिन
उबैदुल्लाह अलीम
नज़्म
ये धूम मची हो होली की और ऐश मज़े का झक्कड़ हो
उस खींचा-खींच घसीटी पर भड़वे रंडी का फक्कड़ हो
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
दिल में जितना आए लूटें क़ौम को शाह-ओ-वज़ीर
खींच ले ख़ंजर कोई जोड़े कोई चिल्ले में तीर
जोश मलीहाबादी
नज़्म
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
आँखें बनाऊँ या रहने ही दूँ
तेरे ख़ाके में मैं तेरे चेहरे के अज़्लात को खींच कर